आजकल के युवाओं को एक अजीब सा नशा चढ़ गया है, आजकल हर एक युवा अपनी भावनाओं को शेरों शायरी में लिखकर अपने करीबी दोस्त फोन पर दिखाने के लिए स्टेटस अपडेट कर देता है।
हालांकि अधिकतर शेर उनके नहीं होते हैं, कभी कभी ये जॉन एलिया लिखकर चेप देते हैं, अरे भाई ये कौन हैं पता है ?
रुकिए हम बताते हैं दरअसल jaun Elia का पूरा नाम सईद हुसैन जॉन असगर नकवी है और जन्म इनका 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था ।
फिर इनका परिवार पाकिस्तान चला गया और वहीं से इन्होने शेरों शायरी मुशायरा में जाना शुरू कर दिया, इनकी अनोखी बातें सीमा लांघ हिन्दुस्तान तक पहुंच गई और 8 नवंबर 2002 में मौत के बाद भी कई कवि शायर इनके प्रशंसक रहें हैं
जॉन के बारे में लिखते हुए कुमार विश्वास कहते हैं कि जॉन एक ख़ूबसूरत जंगल हैं, जिसमें झरबेरियां हैं, कांटे हैं, उगती हुई बेतरतीब झाड़ियां हैं, खिलते हुए बनफूल हैं, बड़े-बड़े देवदारू हैं, शीशम हैं, चारों तरफ़ कूदते हुए हिरन हैं, कहीं शेर भी हैं, मगरमच्छ भी हैं।
जॉन आपको दो तरह से मिलते हैं, एक दर्शन में एक प्रदर्शन में । प्रदर्शन का जॉन वह है जो आप आमतौर पर किसी भी मंच से पढ़ें तो श्रोताओं में ख़ूब कोलाहल मिलता है। दर्शन का जॉन वह है जो आप चुनिंदा मंचों पर पढ़ सकते हैं और श्रोता उन्हें अपने घर ले जा सकते हैं। कुमार विश्वास की यह विवेचना जॉन पर सटीक बैठती है, आप भी पढ़ें जॉन के लिखे ये शेर
बहुत नज़दीक
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
बिन तुम्हारे कभी नहीं आयी
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है
उस से भी अब
उस से भी अब कोई बात क्या करना
ख़ुद से भी बात कीजे कम-कम जी
मैं ख़ुद नहीं हूं और कोई है मेरे अंदर
जो तुम को तरसता है, अब भी आ जाओ
कोई नहीं यहां खामोश
कोई नहीं यहां खामोश, कोई पुकारता नहीं
शहर में एक शोर है और कोई सदा नहीं
ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूं करें हम
हरिक हालत के
हरिक हालत के बैरि हैं ये लम्हे
किसी ग़म के भरोसे पर न रहियो
अब हमारा मकान किस का है
हम तो अपने मकां के थे ही नहीं
जा रहे हो तो जाओ
जा रहे हो तो जाओ लेकिन अब
याद अपनी मुझे दिलाइयो मत
हम आंधियों के बन में किसी कारवां के थे
जाने कहां से आए थे, जाने कहां के थे
और तो हमने क्या किया
और तो हमने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुज़ारे हैं
मेरी जां अब ये सूरत है कि मुझ से
तेरी आदत छुड़ाई जा रही है
दिल जो दीवाना नहीं
दिल जो दीवाना नहीं आख़िर को दीवाना भी था
भूलने पर उस को जब आया को पहचाना भी था
काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौरे-ज़िंदगी ही नहीं
कभी-कभी तो
कभी-कभी तो बहुत याद आने लगते हो
कि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो
मैं अब हर शख़्स से उकता चुका हूं
फ़क़त कुछ दोस्त हैं, और दोस्त भी क्या
आप बस मुझ में ही तो हैं, सो आप
आप बस मुझ में ही तो हैं, सो आप
मेरा बेहद ख़याल कीजिएगा
तू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आयी क्या तू सचमुच आयी है ।
जॉन एलिया हमेशा से आवाज बनते रहेंगे, जबतक युवाओं के सिर पर शेर और शायरी का मुशायरा रहेगा।
One thought on “शेरों शायरी वाले जॉन एलिया कौन थे ?”
Wah bhaiya kya baat aap ne to mere sabse pasandida shayar ke bare me likh diya wah mja aa gya sandar mai rahul yadav
जिंदगी किस तरह बसर होगी दिल नहीं लग रहा मोहब्बत मैं